मां की ममता का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता

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माँकाकोईपर्यायनहीं_साहेब!

तस्वीर देखिये। बच्चे को दूध पिलाती माँ! माँ का चेहरा देखिये, क्या आपको लगता है कि उसकी छाती में छटाक भर भी दूध होगा? चेहरा बता रहा है कि दुखों ने उसके शरीर से खून-पानी-दूध सब चूस लिया है। कितने दिनों से उसके पेट मे अन्न का एक दाना भी नहीं गया है, कहा नहीं जा सकता। फिर भी वह दूध पिला रही है। दूध क्या, खून पिला रही है। वह माँ है। वह साल भर का बच्चा जो उसकी छाती से अमृत चूस रहा है, एक लगभग मृत शरीर से अपने लिए जीवन चूस रहा है। वह जानता तक नहीं कि वह माँ का खून चूस रहा है। जाने भी कैसे? माँ की गोद मे बैठा एक साल का बच्चा यदि कुछ जानता है तो बस इतना कि वह ईश्वर की गोद में है। बच्चे जब तक बाहरी ज्ञान से अपरिचित होते हैं, अर्थात जबतक पूर्णतः निश्छल, निर्लोभ, निर्विकार होते हैं तबतक उनके लिए माँ ही ईश्वर होती तनिक सोच कर देखिये, क्या कोई पुरुष ऐसा कर सकता है? कुछ अपवादों को छोड़ दें तो शायद नहीं। ईश्वर ने यह शक्ति केवल स्त्रियों को दी है। तभी प्रेमचन्द ने लिखा था, "पुरुष में यदि स्त्री के गुण आ जाँय तो वह महात्मा हो जाता है।" यह तस्वीर भारत विभाजन के समय की है। उस स्त्री का उदास और आभाहीन मुखड़ा देख कर हम कह सकते हैं कि यह पिछली सदी की सबसे कुरूप तस्वीरों में से एक है, पर उस माँ के वात्सल्य का यह दुर्लभ रूप कह रहा है कि यह तस्वीर बहुत सुंदर भी है। माँ की तस्वीर कभी कुरूप नहीं होती। पत्नी कुरूप हो सकती है, बेटी कुरूप हो सकती है, बहन कुरूप हो सकती है, पर माँ कभी कुरूप नहीं होती कभी भी नही😊😊😘 यह बच्चा यदि बच गया हो तो अपनी युवा अवस्था मे उसे शायद ही याद रहा होगा कि उसकी माँ ने उसे क्या पिलाया था। बेटे कहाँ याद रख पाते हैं। बेटे शायद इसलिए भी याद नहीं रख पाते क्योंकि वे माँ नहीं होते हैं।

इंडिया News24 बुंदेली सागर श्री रामगोपाल कुशवाहा की स्पेशल रिपोर्ट

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